Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 209
________________ २०६ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, देना हो तो ज्ञान देदो, उजा नही काम है जी ॥ मे ॥६॥निधि रस निधीन्पुवर्षे, पोस मासे सीत पदे, चतुर्दशी दिन नेटे, एही धनीराम है ॥ मे ॥७॥ (श्रीसीनोर मंडन सुमति जिनस्तवनम्) सुखकारी, सुखकारी, सुखकारी, कृ. पानाथ हो जाऊंवारी, सुमति जिन सुमति सेवकनेदीजियेजी ॥ ए आंकणी. ॥ दरिसण देव दिजे, कुमतिकुंपूर कीजे; ॥ ए ही माणु बु हे दातारी. ॥ कृपा० ॥१॥ कुमतिने कामण कीया, मुजको नरमाई दीया ॥ इनसे बोमा दो हे सरदारी ॥ कृपा ॥२॥ पंचम अवतार लीया, मुनियाँकुं तार दीया ॥ आशा पुरा कहुँबु पोकारी ॥ कृपाण ॥३॥ निरादर नाही कीजे, बिरूद संजाल लीजे॥तरण तारण बो हे अधिकारी॥ कृपा ॥ ४ ॥

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