Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ २०७ स्तवनावली. सीनोर मंगन नामी, सुमति जिनेश्वर स्वामी ॥ बेमी उतारो प्रजुजी हमारी. ॥ कृपा ॥ ५॥ निधि रस निधि चंदा, संवत् सुखकंदा ॥ वीरविजयकुं श्रानन्दकारी ।। कृपा० ॥६॥ ॥ (अथ गुदली लिख्यते)॥ सहीयर सुणियेरे, जगवती सूत्रनी वाणी. ए देशी. जवियण सुणजोरे, कल्पसूत्रनी वाणी ॥ मीठी लागेरे, वाणी अमीय समाणी. श्रांकणी ॥ कल्पसूत्रनी मोटी महीमा, वीर जिणंद बखाणे ॥ गौतमगणधर वीरवचनने, हृदय कमलमा धारे॥ नविन ॥ १ ॥ अरिहंत सम नहीं देव जगतमें, पदमे परमपद मोटुं॥ तीरथमें शत्रुजय जाणो, सूत्र में कल्प वखाणोनिविण ॥२॥ देवगणोमें इंज मोटा, तारागणमें चं ॥ न्याय नीतिमें राम वखाणो

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216