Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay
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२७ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत,
काम स्वरूपमें जाणो ॥ नविण ॥३॥ रूपवतीमें रुभिरंजा, वाजिनमें जेम जंजा; गजवरमें ऐरावण कहिये, युद्धमें रावण लहिये. ॥ नवि० ॥४॥ बाणावलीमें अर्जुन बलियो, गुणमे विनय ज्यु नणियो; । मंत्रमांहिनवकारज जाणो, बुझिमें अजय गवाणो. ॥ नविण ॥५॥ सर्व वृक्षमें कल्पवृक्ष जेम, अधिक बमाई धारे ॥ सर्व सूत्रमें कल्पसूत्र तेम, पाप कलंक निवारे ॥ नवि०॥६॥ कल्पसूत्र जे नणशे गणशे, तिसत्तवार सांजलशे॥ वीर कहे सांजलजो गौतम, ते जवसायर तरशे ॥ नविन ॥७॥ निधि रस निधि इंड वत्सरमें,, रही सीनोर चौमासु ॥ वीरविजय कहे वीरप्रजुकी, वाणीमें नहीं काचुं ॥ नवि० ॥७॥ RECORDING
समाप्त.
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