Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 196
________________ स्तवनावली. १३ बहु शिष्य ने परिवार । ज्ञान अद्भुत जले करी सींचतारे | हिंसता जत्रिक कमल संघाता । हुं बलहारी ए गुरुराजनीरे ॥ कखी ॥ १ ॥ अवसर क्षेत्र फरसना करीरे । पालीताणा नगर मोजार । सिद्धक्षेत्र सिद्धाचल नेटवारे । आव्या श्रतमराम अणगार ॥ हुं ॥ २ ॥ पंच समति तिन गुप्ति बिराजतारे । धरता धरमतणुं एक ध्यान । हरता मोह दशा महा फंदनेरे । करता ज्ञान ध्यान एक तान ॥ हुं ॥ ३ ॥ पंचम काल मे कुगुरु सोहलारे । दोहला सुगुरु तथा देदार | पामी जव्य जीव तुमे सांजलोरे । जगवती सूत्रतणो अधिकार ॥ हुं ॥ ४ ॥ चातकने मन जलधर चाहनारे । कामनीने मन कंथनी चाह । तेम मारा गुरुजीनी वाणी उपरेरे । श्रोता जननी प्रिती अथाह ॥ हुं ॥ ५ ॥ गुणवती सही यर सब टोले मलीरे । आवती गुरुजी ने १७

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