Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 194
________________ सजाय. १९१ होनिस्तारा ॥ आंकणी ॥ धन कण कंचनकीकोडी । सवरिद्धी जगतकी जोमी । गये बडे बडे सब बोमी । सुत मांत तात अरु जात जगतके ठाठ अंतमें न्यारा ॥श्न ॥१॥ ए दुनियां मुखकी खानी। जिहांराग षदे पानी । ए महावीर की वानी । हेखुरक खादकाखाद नहीं थाबाद वडा मुख नारा ॥श्न ॥२॥ बममोह पास गलेडारा । प्रनु नाम पकमले प्यारा । करले गुरु ज्ञान विचारा । एसो बातनकी बात रहेगी लाज सवी सुख सारा ॥श्न ॥३॥ वैराग्यकी बातां दाखी विषयोंमें म करो फांखी। कदेवीर विजयमें शाखी है सब कुखोंका मूल नहीं अनुकूल बडो मेरे प्यारा ॥श्न ॥४॥ इति । सजाय । समातं ॥

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