Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 195
________________ १एर श्रीमपिरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ नेमराजुख सफाय ॥ तूं बडदे खामी सीव शोकनको संग ॥ श्रांकणी ॥ बहोत बरातसें व्याहन आये। ते अब क्यु पावत नंगरे ॥ तुं॥ १॥ सती व्रत धारीमें बाल कुमारी ते करले मुजसु रंगरे ॥ तुं ॥२॥ शीवरमणीकी कुमी हे करणी । ते परणी सिक अनंतरे ॥ तुं ॥३॥ कामणगारी मुख देन हारी। ते करती रंगमें नंगरे ॥ तुं ॥४॥ मोमन मतियां तोहमरी क्या गतियां बतियां होत हे नंगरे ॥ तुं ॥५॥ विनती न धारी चली गिरनारी राजुल नेमी संगरे ॥ तुं ॥ ६॥ वीरविजय कहे नेम ने राजुल। पाये सुख अनंगरे ॥तुं॥ इति समाप्ता ॥ ॥ अथ गुदली॥ सेवो नवियण जिन त्रेवीसमोरे॥ए देशी गुरु मारा गाम नगर पुर विचरंतारे।

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