Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ १९ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, .. ॥ अथ उसिया नगरी वीर जिन स्तवन ॥ ए अरजी मोरी सैयां ॥ ए देशी ॥ माहावीरजी मुजरो लीजे। सेवक कुं शरणा दीजे माहा ॥ आंकणी ॥ तुं निकारण उपगारी । चंदनवालाकुं तारी। ऐसी नजर प्रनु कीजे । सेवककुं शरणादीजे ॥१॥ चमकोसियो करमसें नारी। कीयो खर्ग तणो अधिकारी । युं वांह पकमकर लीजें ॥ सेव ॥ ॥ संगम कुरुणाकीनी । उपसर्गमें दृष्टी न दिनी। प्रजुतारिफ केती कीजे ॥ सेव ॥३॥ तुं उसिया मंमन स्वामी। पून्ये प्रजु दरिशणपामी। कहे वीरविजय संग लीजे। से वककुं शरणा दीजे ॥४॥ इति समाप्तं ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216