Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ AAMAN पदो. १७ ध्यानारूढ नयवारीरे ॥ हांदे ॥३॥ शोक संतापको घर निवारी । एकमगनता धारीरे । बिनमे निज श्रातमको तारी। नजते नवदधी पारीरे ॥ हांदे ॥४॥ऐसे सुनिवर देव्रतधारी। श्रातम आनंद कारीरे । वीर विजय कहे हुं वलहार। नमुं नमुं सोसो वारीरे ॥ हांदे॥५॥ इति समाप्तं ॥ ॥ गुरुदेवकी सद्याय ॥ रेखता ॥ विजे श्रानंद सूरि राया। पुरवले पुन्यसें पाया। चतुरविध संघमें धोरी। गुरुजीसें वंदना मोरी ॥१॥ गुणपत्रिंशके धरता । अहो उपगारके करता। धरसकी टेकहे नारी। गुरु है बाल ब्रह्मचारी ॥ वि ॥२॥ गुरुजी ज्ञानके धरता । कुमतके मानको हरता । देखके वादी सव मरता ॥ न सनमुख पेरको

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216