Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 188
________________ १७५ ~ कीनी क्या ऐसी बुराई ॥ मे ॥३॥ फूही हैं बुरी है उनियांकी सगाई । वैराग्यलियो है गिरनारी जाइ ॥ मे ॥३॥ वमा तप करके मोक्ष पदपा। कहे वीर विजय धन्य उनकी कमाई ॥ मे ॥४॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ वैराग्य पद ॥ राग सारंग । घट जागी ज्ञान वैराग्यरी । तुम बंमो माया जालरी ॥ घट । ॥ आंकणी ॥ एक सहस्त्र अंते जर जाके रूप रूपके आगरी। मिथिला राज्य बोडके निकसे । राज झषी नमि रायरी॥घ । -॥१॥ रूपकी संपद सुरपति बरनी। चक्रि सनतकुमाररी। छिनमे रोगजये निज तनमे । देखो कर्मकथा बरी॥ घ॥ ॥॥ देखत देखत सवही विनसत । तनधन अथिर खनावरी । ऐसी नावना

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