Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 187
________________ १४ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, ~ ~ ॥अथ नेम राजुलसंबंधी पद ॥ - मोरे मंदिरवा प्रजुजी न आये। नाये ऐसोजपति रथ फीराये ना हाथ मिलाये ॥ मो ॥श्रांकणी ॥ पशुवन प्रनु करुणा कीनी क्या तकसीर मेनुंडम दीनी ॥ मो॥ १॥नव नव केरी प्रीत जो तोमी । सोकनसीव वधुसें दिलजोरी ॥ मो ॥॥ राजुल राग केषको बोमी । संयम लेश करम बंध तोरी ॥ मो॥३॥ मनमान्यो मोद सुख पाई। वीरविजय कहे धन्य कमाई ॥ मो ॥४॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ नेमराजुल पद ॥ मालकोश ॥ मेनुं बमके गिरनारी गये मेरे सांही। में जुली नहीं जब पकडती दोबांही । मे ॥ १॥ थादिलों में दगा तब क्युं कीनी सगाई। माबिक मेने

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