Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 189
________________ १८६ श्रीमदिर विजयोपाध्याय कृत, जावतही मन । बोम लियो वैराग्यरी ॥ घ ॥ ॥३॥ सचा त्याग किये बिन कबहु | पावत नहीं जवपाररी । परपरणितीत्यागो चेतन | वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ ॥ ४ ॥ इति समाप्तं ॥ ॥ अथ सुनिगुण सझाय ॥ हां देखो मुनिवर ममता मारी जये पंच महाव्रत धारीरे ॥ हां ॥ देखो ॥ श्रकणी ॥ हिंसा जुठ चोरी ने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारीरे । बाह्याभ्यंतर ग्रंथी निवारी । जोग तरसना बारीरे ॥ हांदे ॥१॥ तपशोषित तनु कृशधारी । जगजन आ-नंद कारीरे । पूजक नंदक दो शम कारी । जजते जय विहारीरे ॥ हांदे ॥ २ ॥ राग द्वेषकी परणिती वारी । परिसह फोजकुं डारी | गुण गुण स्थानक धारी ।

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