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स्तवनावली. सो है । जगमग ज्योतिसवाया है। देख देखके प्रनु दरिशणकुं । नगरलोक सब आया है ॥ दे ॥४॥ अजितनाथ प्रजुकी महिमाका । चमतकार ए पाया है। वी. कानेरमें आज अनोपम । धवल मंगल वरताया है ॥ दे॥५॥ गानतान सबसाज मानसें । मेरी नाद बजमाया है। तन मन धनसे उंबवकरके । संघसकलदखाया है ॥ दे ॥६॥ सपरिवारे विजय कमलसूरि। चतुर मास जब आया है। वीकानेरमें उडव महोदय । अधिक अधिक जलकाया है ॥ दे ॥ ७॥ उँगणिसे सडसह शो शुदकी। पूर्णमासी दिन शाया है। वीर विजय कहे प्रजु दरिशणसें । श्रातम आनंद. पाया है।
॥ इति संपूर्ण ॥