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श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत,
विजय कहे. आज हमारा | मननुं कारजसिध्यं ॥ ज ॥ १५ ॥ . इति स्तवन संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री महावीर जिन स्तवन ॥ माहावीर महावीर नजले तुं जाई । महावीरविन है न कोई सहाई ॥ मा ॥
कणी ॥ मानुष्य जन्मकी करले कमाई | सिद्धारथ सुनुंबनाले तूं साई ॥ मा ॥ १ ॥ निष्कारणबंधु परमसुखदाई | महावीरजी की है एही बनाई ॥ मा ॥ २ ॥ स्वारथ की तुंबोमदे मातपिताई । ईनोसे नहोंगी तुजे कुछ जलाई ॥ मा ॥३॥ देखो डुनियां की है कैसी सगाई । सबी लुटलेवे श्रो अपनी कमाई ॥ मा ॥ ४ ॥ बोड सब मोहलोह दुःखदाई | शरण कर वीर विनू मेरेजाई ॥ मां ॥ ५ ॥ इति श्री महावीर जिन स्तवन संपूर्ण ॥