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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत,
मर तुं सदा नित्य है । जिन धनि यह सुनी काने ॥ योवन० ॥ ५ ॥ इति नित्य भावना ॥
अथ दूसरी अशरण जावना.
राग मराठी अपने पदको तजकर चेतन परमे फसनाना चाइये ॥ ए देशी ॥ निज स्वरूप जाने विन चेतन जगमें नहीं कोई है सरना । क्यों जरम मूलाना जान निजरूप आनंद रस घट जरना ॥ निज० ॥१॥ इंद्र उपेंद्र आदि सब राने विना सरन यम मुख परना । अति रोग जराये जीव की कौन करे जगमे करुणा ॥ निज० ॥२॥ मात पिता खसु जात पुत्र के देखत ही यम ले चलना | मुखवाय रहेंगे सरणा नहीं तिननें को करना ॥ निज० ॥ ३ ॥ मृतक देखी शोच करे मन अपना सोच नहीं करना । ढ मुरख तूंरे करम की