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घादश लावना.
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प्राणी संचित जो जन्मांतर केरो। तुम ॥१॥ धन संच्यो करी पाप नयंकर नोगत खजन आनंद नरेरो । आप मरी गयो नरकही थाने सहे कलेश अनंत खरेरो ॥ तुम॥ २॥ जिस वनितासे मद नहि मातो दिये आमरण हि वसन नलेरो । सो तनु सजी पर पुरुष के संगे जोग करे मन हर्ष घनेरो ॥ तुम॥३॥ जीवित रूप विद्युत सम चंचल माल अनी उद विंड लगेरो । इनमें क्यों मुरझायो चेतन सत चिद आनंद रूप एकोरो ॥ तुम ॥ ४॥ एकही आतमराम सुहंकर सर्व नयंकर दूर टरेरो । सम्यग दरसन ज्ञान स्वरूपी नेष संयोगहि बाह्य धरेरो ॥ तुम ॥५॥
इति एकत्व नावना। अथ पंचमी अन्यत्व नावना.
॥ राग नेरवी॥ ब्रह्मज्ञान रस रंगीरे चेतन ॥ ब्रह्म ॥