SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घादश लावना. ४७ प्राणी संचित जो जन्मांतर केरो। तुम ॥१॥ धन संच्यो करी पाप नयंकर नोगत खजन आनंद नरेरो । आप मरी गयो नरकही थाने सहे कलेश अनंत खरेरो ॥ तुम॥ २॥ जिस वनितासे मद नहि मातो दिये आमरण हि वसन नलेरो । सो तनु सजी पर पुरुष के संगे जोग करे मन हर्ष घनेरो ॥ तुम॥३॥ जीवित रूप विद्युत सम चंचल माल अनी उद विंड लगेरो । इनमें क्यों मुरझायो चेतन सत चिद आनंद रूप एकोरो ॥ तुम ॥ ४॥ एकही आतमराम सुहंकर सर्व नयंकर दूर टरेरो । सम्यग दरसन ज्ञान स्वरूपी नेष संयोगहि बाह्य धरेरो ॥ तुम ॥५॥ इति एकत्व नावना। अथ पंचमी अन्यत्व नावना. ॥ राग नेरवी॥ ब्रह्मज्ञान रस रंगीरे चेतन ॥ ब्रह्म ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy