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श्रीमचीरविजयोपाध्याय कृत,
॥अथ परचुरण स्तवनो लिख्यते ॥ ॥ अथ श्रीनावनगर मंडण श्री
चंप्रन जिन स्तवन ॥ राग असना दादरो॥चंडवदन शुन चंड प्रनु ताहरा । देखी दिलशांत मन चकोर रीजे माहरा ॥१॥ नयन युगल जये शांत रस ताहरा । प्रनु गुण कमल नमर मन माहरा ॥२॥प्रज्जु तोही ज्ञान सोही मान सर ताहरा उहांमनहंस खेले रातदीन माहा ॥३॥ प्रचु करुणा दृग हमसे नई ताहरी। तब मदमोह किसी निंदखुली माहरी ॥ ॥ अति उत्कंठ से मे दर्श चाह ताहरा। करमके फंद से जो नाग्य खुले माहरा ॥५॥ नाव पुरे वास जया खास प्रनु ताहरा सिक हुवा काज वीरविजय कहे माहरा॥