________________
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत,
री । तारो तो सही । एद्वादश विध तव घम गजार उधारो तो सही ॥ थारी ||४|| युगलक धर्म निवारण तारण । हारो तो सही । ए जगत उधारण रुषव जिनेश्वर प्यारो तो सही ॥ यारी ॥ ५ ॥ विमलाचल मंडन अघ खंमन सारो तो सही । ए आत्मराम आनंदरस चाख | उगारो तो सही ॥ थारी ॥ ६ ॥ इति ॥
अथ सर्व जिन सामान्य स्तवन.
जीनंदजी व मोए डांगरीया, काटराट जया थानक जयानक || अब ॥ यांकणी ॥ मत मत जग जाल फस्यो में, तो दुःख अनंता पाय ॥ जी ॥ दीन अनाथ विहार लाल तुम, अब चरण सरण तुम पाय || जी छाव ॥ १ ॥ जाचक निशदीन मागत तोपण, दानी कबु नहीं थाय ॥ जी ॥ प्रभुजी नहींतो चींतीत दा