________________
१०५
पदो. उग्यो चंद | वियतं शिखिं निधि झंडे सुन - वर्षे । मास वैशाखे पूनिमचंद ॥ म ॥ ७ ॥ इति जोयणी मंगन मलि जिन स्तवन ॥
अथ श्रीफलवर्धी पार्श्व जीन स्तवन.
पूजो तो सही मारा चेतन पूजो तो सही येतो फल वर्धी पार्श्वनाथ प्रजुको पूजो तो सही ॥ ए चली ॥ अष्टादश दोषन करी वर्जत देवो तो सही ॥ मा ॥ ॥ टुक स्याम सलुनो रूप श्रानंदजर जोवो तो सही ॥ थे ॥ १ ॥ परमानंद कंद प्रभु पारस पारस तो सही ॥ मा ॥ तुम निज आत्मको कनक करण टुक फरसो तो सही ॥ थे ॥ २ ॥ अजर अ मर प्रभु ईश निरंजन जंजन करम कही ॥ मा ॥ एतो सेवक मनवंबित संब पूर्ण अदभूत कल्प सही ॥ थे ॥ ३ ॥ 'चंद्र 'अंक' वेदे 'दीव संवत षष्टी मैत्र लही ॥ मा ॥ मन हर्ष हर्ष प्रभुके गुण गावत परमानंद लही ॥ थे ॥४॥ इति सम्पूर्णम् ॥
=