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श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत,
॥ कलश ॥
चौबीस' जिनवरसयल ॥
सुख कर गावतां मन गहगहै | संघ रंग उमंग निजगुण जावतां शिव पद लदै ॥ नामे अंबालानगर जिनवर वैन रस न विजन पिये । संवरो खं० श्रग्नि३ निधि विधु१ रूप आतम जस जस किये १
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॥ दोहा ॥
जिनवर जस मनमोदथी । हुकम मुनिके देत । जो जवि गावत रंगसु । अजरामर पद देत ॥
इति श्री आत्मारामानंद विजयकृता चतुर्विंशतिका समाप्ता ।