Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 9
________________ उत्तर प्रत्युत्तर असमंजस रीतीसें राधनपुरनगरमें नही आवनेकी सूचना करनेवाला लिखके नेज दीया. इस लिखनेका प्रयोजन यह है के जब रत्नविज यजीने श्रीअहमदाबाद में सजा नही करी तब विद्या शालाके बैठने वाले मगनलालजी तथा बोटालालजी आदिक अन्यनी कितनेक श्रावकोने प्रार्थना करीथी अरु अब श्रीराधनपुर नगरके शेठ शिरचंदजी अरु गोडीदासादि सर्व संघ मिलके मुनि श्री आत्मारा मजी महाराजकों प्रार्थना करी के, रत्न विजयजी तीन थुइ प्ररूपते हैं, अरु प्रतिक्रमणकी आदिकी चैत्यवंदनमें चार शुइ कहनेकी रीत प्राचीन कालसें सर्व श्रीसंघमें चली आती है. तो आप सर्व देशोंके चतुर्विध श्रीसंघके पर कृपा करके पडिक्कमणेकी आ दिमें चार शुश्यों चैत्यबंदनमें जो कहते हैं सो पूर्वा चार्योंके बनाये ढूए कौन कौनसे शास्त्रके अनुसारकहते हैं, ऐसे बहोत शास्त्रोंकी सादि पूर्वक चार थुश योंका निर्णय करने वाला एक ग्रंथ बनवायदो, जि सके वाचने पढनसे सङनोके अंतःकरणमें अर्दच न बापन करणे वालेने चम माल दीया है सो मिट . जावेगा. इत्यादि बहोत नपकार होवेगा ऐसी श्रीसं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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