Book Title: Chaturthstuti Nirnay Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ (६) इसी वास्ते में आपके पास विनंति करनेके वास्ते यहां आयाहूं के आप राजधनपुर नगरमें पधारो, क्योंके ? रत्न विजयजी आपसें तीन थुइबाबत चरचा करणेकों कहते है, यह बात सुनकर मुनि श्री या त्मारामजी महाराजनें मांमल गामसें राधनपुर नग रकों विहार करा सो जब श्रीसंखेश्वर पार्श्वनाथजीके तीर्थमें आये, तहां राधनपुर नगरसें बहुत श्रावक जन आकर महाराज साहेबकों कहने लगे के रत्न विजयजी तो राधनपुर नगरसें थराद गामकी तरफ विहार कर गए हैं. यह बात सुनके श्रावक गोडीदास जीने राधनपुरके नगरशेत सिरचंदजीके योग्य पत्र लिखके नेजा के तुमने रतनविजयजीकों मुनि आ त्मारामजी महाराजके बावणे तक राखणा,क्योंके ? रत्नविजयजीके मास कल्पसें उपरांत रहनेका नि यम नही है कितनेक गामोमें रत्नविजयजी मास कल्पसें अधिकनी रहे हैं यह बात प्रसिद्ध है ऐसा पत्र वांचके शेठ सिरचंदजीने राजधनपुर नगरसें दश कोश दूर तेरवाडा गाममें जहां रत्नविजयजी विहार करके रहेथें, वहां कासीदके मारफत एक पत्र लिखके नेजा; तहांसे रत्नविजयजीने उसपत्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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