Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari Author(s): Vignanjanashreeji Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust View full book textPage 9
________________ के लिए अपना मन उसमें केन्द्रित कर सकते हैं । बिना किसी आलम्बन अथवा द्रव्य के भाव पैदा ही कैसे होंगे ? प्रभु प्रतिमा में एक भक्त साक्षात् भगवान के दर्शन करता हैं और अपनी इसी भक्ति धारा में बहता हुआ वह आठ कर्मों का क्षय भी कर लेता हैं। जैसे - परमात्मा का चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुति आदि के द्वारा गुणगान से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय, परमात्मा के दर्शन से दर्शनावरणीय कर्म का क्षय, जयणायुक्त पूजा से अशाता वेदनीय कर्म का क्षय, परमात्मा की प्रतिमा का दर्शन करता हुआ वह उनके गुण स्मरण और चिंतन से स्वयं के मोहनीय कर्म का क्षय एवं सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कर लेता हैं । अक्षय स्थिति युक्त अरिहंत के पूजन से आयुष्य कर्म का क्षय होता हैं । I परमात्मा के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति और अगर मोक्ष प्राप्ति न हो तो शुभ गति का बंध अवश्य होता हैं । अनामी प्रभु के नाम स्मरण से नाम कर्म का क्षय होता हैं । परमात्मन् वंदन से नीच गोत्र कर्म का क्षय होता हैं । प्रभु भक्ति में अपने द्रव्य का समर्पण और शक्ति का उपयोग करने से अंतराय कर्म का क्षय होता हैं । जिण बिंब दंसणेण णिधत्त णिकाचिदस्स मिच्छतादि कम्मक्खय दंसणादो ॥ जिन बिम्ब - जिन प्रतिमा के दर्शन से निकाचित और निधत्त कर्मों का क्षय होता हैं तथा मिथ्यात्व कर्मों का भी क्षय होता हैं । हमारे प्राचीन आगम यह स्पष्ट कहते है कि जिनप्रतिमा और जिनेश्वर प्रभु समान हैं। इसका उदाहरण हैं - समवसरण में उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीन दिशाओं में स्थापित परमात्मा के प्रतिबिम्ब । जिनेश्वर परमात्मा सदैव समवसरण में पूर्वाभिमुख विराजते हैं, शेष अन्य तीन दिशाओं में परमात्मा के प्रतिबिम्ब होते हैं, जिन्हें चतुर्विध श्री संघ साक्षात् परमात्मा समझकर वंदन चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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