Book Title: Bharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Author(s): Madhu Smitashreeji
Publisher: Durgadevi Nahta Charity Trust

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Page 17
________________ ( ३ ) भारतीय राजनीति शास्त्र के मूल स्रोत वैदिक ग्रन्थों में मिलते हैं । ' सर्वप्रथम वैदिक और ब्राह्मण काल में राजनीति शास्त्र के अध्ययन प्रणाली का वर्णन आता है । इस काल में राजनीति शास्त्र के स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुए थे; फिर भी वैदिक ग्रन्थों के अन्तर्गत राज्य-शास्त्र का विवेचन किया गया है। जिसके आधार पर हम यह जान सकते हैं कि प्राचीन समय में राजनीति - शास्त्र के अध्ययन की परम्परा कैसी थी । इसके पश्चात् धर्मसूत्रों में वर्णित राजनीति का विवेचन आता है । वैसे धर्मसूत्रों का दृष्टिकोण धार्मिक है, न कि राजनैतिक । फिर भी इन धर्मसूत्रों के आधार पर प्राचीन राजनीति का थोड़ा अंश प्राप्त होता है । इसके पश्चात् महाभारत में और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजनीति का विशद विवेचन किया गया है । महाभारत के “शान्तिपर्व' के अध्यायों में राजा के कर्त्तव्यों एवं शासन व्यवस्था का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है । कौटिल्य अर्थ-शास्त्र तो राज्यशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ही । इसके अलावा “कामन्दकीय नीतिसार", "शुक्रनीति" में भी शासन व्यवस्था का वर्णन किया गया है। पुराणों में भी राज्य - शास्त्र की चर्चा की गई है। 1 उपर्युक्त ग्रन्थों के आधार पर ही हम प्राचीन राजनीति का संक्षेप में चित्र अंकित करेंगे । जब हम प्राचीन राजनीति पर दृष्टिपात करते हैं, तो सर्वप्रथम हमारा लक्ष्य वैदिक ब्राह्मण काल की ओर जाता है; क्योंकि प्राचीन राज-शास्त्र का उद्भव वैदिक काल से हुआ है । इस काल के राजनीति के ग्रन्थ न होने पर भी वैदिक वाङ्मय में इतस्तः स्फुट वचन मिलते हैं; जिनसे तत्कालीन राजनीति और व्यवस्था का थोड़ा परिचय मिल जाता हैं । वैदिक काल में राजा पूर्णतया स्वेच्छाचारी नहीं रहते थे; बल्कि जातीय सभा व समिति द्वारा राजा के अधिकारों पर नियन्त्रण रहता था । राष्ट्रीय जीवन के सभी कार्य सार्वजनिक समूहों और संस्थाओं आदि के द्वारा हुआ करते थे ।' के० पी० जायसवाल का कहना है कि " राजत्व मनुष्य निर्मित ?. Saletore: Ancient Indian Political Thought and Institution, Asia Publishing House, Page 96; २. हिन्दू राजतन्त्र, पृ० १२ ।

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