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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
अननुबद्ध केवलियों में अन्तिम केवली श्रीधर मुनि कुण्डलपुरसे मुक्त हुए। उपर्युक्त आधारपर कुछ विद्वान् कुण्डलपुर क्षेत्रको श्रीधर मुनिकी निर्वाण-भूमि मानकर उसे निर्वाण-क्षेत्र मानते हैं।
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कुछ लोग अहारको निर्वाण क्षेत्र मानते हैं। इनकी मान्यता है कि मदनकुमार और विष्कंवल केवली यहाँसे मुक्त हुए थे ।
मध्यप्रदेश के उपर्युक्त सिद्धक्षेत्रों में चूलगिरि ( बड़वानी ) को छोड़कर शेष सभी सिद्धक्षेत्रोंकी अवस्थिति सम्बन्धमें विवाद है । कुछ लोग मानते हैं कि वर्तमानमें पावागिरि, सिद्धवरकूट, रेशंदीगिरि, द्रोणगिरि और सोनागिरि जहाँ हैं, वस्तुतः ये क्षेत्र अपने मूल स्थानपर नहीं रहे । जैन समाज इनके मूल स्थानोंको भूल चुकी है और कुछ खण्डहरों या मन्दिरोंको देखकर विभिन्न स्थानों पर इन तीर्थों की स्थापना कर ली है। इनमें से कुछ क्षेत्र तो इसी शताब्दीमें ५० वर्षके भीतर ही स्थापित किये गये हैं । अतः यह स्वाभाविक है कि इन क्षेत्रोंके वास्तविक स्थानका पता लगाया जाये ।
दूसरा पक्ष यह है कि ये क्षेत्र अपने वास्तविक स्थानपर ही हैं। इसके लिए वे विभिन्न प्रमाण भी उपस्थित करते हैं ।
किन्तु इन दोनों पक्ष-विपक्षोंसे व्यतिरिक्त एक तीसरा तटस्थ पक्ष भी है। उसका कहना है कि प्रत्येक क्षेत्र जहाँ था, उस स्थानको खोज होना अत्यन्त आवश्यक है । क्षेत्रोंके वास्तविक | स्थानोंका अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है । उनके अनुसन्धानकी बड़ी आवश्यकता है । किन्तु जबतक क्षेत्रोंकी वर्तमान स्थितिके विरुद्ध ठोस प्रमाण प्राप्त न हों, तबतक इन क्षेत्रोंको अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जहाँ १२ वर्ष तक भक्तजन यात्रा, पूजन और दर्शनों के लिए जाते रहते हैं, वह स्थान पवित्र तीर्थक्षेत्र बन जाता है । फिर इन क्षेत्रोंकी मान्यताको तो कई १२ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इन तीर्थक्षेत्रोंके साथ असंख्य भक्तजनोंका भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ चुका है । अतः बिना किसी ठोस आधारके इन तीर्थक्षेत्रोंको अमान्य नहीं ठहराया जा सकता ।
यहाँ एक बात विशेष उल्लेखनीय है । मध्यप्रदेशमें किसी तीर्थंकरका एक भी कल्याणक नहीं हुआ। उत्तरप्रदेश में १८ तीर्थंकरोंके गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान कल्याणक हुए । ऋषभदेवका निर्वाण कल्याणक भी उत्तरप्रदेशमें ही हुआ । नेमिनाथके केवल गर्भं और जन्म कल्याणक ही उत्तरप्रदेशमें . शेष कल्याणक गुजरात हुए, प्रदेशमें हुए । इसी प्रकार बिहार प्रदेशमें भी ६ तीर्थंकरोंके गर्भं, जन्म, तप, केवलज्ञान कल्याणक हुए तथा २२ तीर्थंकरोंके निर्वाणकल्याणक हुए । गुजरातमें भगवान् नेमिनाथके तप, केवलज्ञान और निर्वाण कल्याण हुए।
कुछ लोगों की मान्यता है कि उदयगिरि ( विदिशा ) में भगवान् शीतलनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान कल्याणक हुए थे । यद्यपि इसके लिए कोई ठोस आधार उपलब्ध नहीं हैं ।
अतिशय क्षेत्र
मध्यप्रदेश अतिशय क्षेत्रोंके मामलेमें अत्यन्त समृद्ध है। इस प्रदेशमें जितने अतिशय क्षेत्र विद्यमान हैं, उतने अतिशय क्षेत्र किसी दूसरे प्रदेश में नहीं मिलते। इन अतिशय क्षेत्रोंसे सम्बन्धित •अनेक सरस और रोचक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कुछ किंवदन्तियां तो सामान्य ( Common ) हैं जो कई अतिशय क्षेत्रोंके लिए समान रूपसे प्रचलित हैं। जैसे रांगका चांदी बन जाना, बावड़ीमें एक पर्ची पर बरतनोंका नाम लिखकर डालना और बावड़ीसे तदनुरूप बरतन निकलना । कुछ