Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ नक्ता // मूलम् ।।-वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशांककांतान | कस्ते दमः सुरगुरुपतिमोऽपि बुट्या || // कल्पांतकालपवनोउतनकचक्रं / को वा तरीतुमलमंबुनिधि जान्यां // 4 // व्याख्या हे गु. णसमुद्र ! स्थैर्यगांभीर्य धैर्यादिगुणरत्नरत्नाकर ! को बुधस्ते तव शशांककांता निर्मलकलाकमनीयान | शांततादीन गुणान वक्तुं जल्पितुं दमः समर्थः? किंभृतोऽपि ? बुध्या प्रतिनया सुरगुरुप्रतिमोऽपि वाचस्पतिसमोऽपि, अत्र दृष्टांतः-वा नपमितौ, कस्तरणकलाकुशलो नरो जान्यां बाहुल्यामबुनिधिं सागरं तरीतुं तत्पारं प्राप्तुमलं शक्तः अपि तु न कश्चिदित्यर्थः. कल्पांतकालस्य पवनेनोहता. न्यविनीतानि मुर्दशानि. नधृतान्यूज़ चलितानि वा. नऋचत्राणि पादोवृंदानि यत्रेति समासः. प्रलयमरुप्रेरितदुष्टजंतुजातमित्यर्थः. यथा युगांताब्याब्धितरणं उःशकं तथाईत्कीर्तनं गीष्यतरेऽपि उर्घटं. तत्राहं प्रवृत्तः, समर्थ श्वानास्यामि विदाने, श्यनौठत्यं. यत्रापि च मंत्रः प्रा. कथित एव ज्ञेयः. प्रभावे कथा यथा-वार्षािहुफलकेन / तीर्णश्वकाप्रसादतः // पुरानुत्सुमतिः श्रीमान् / स्तवचिंतामणिस्मृतेः // 1 // पुरोज्जयिन्यां पुरि दारिद्याकरो जाऽकप्रकृतिः सुमतिर्वणि. गत्, स च कंचन जैनमुनिमवंदत, तस्याग्रे मुनिर्देशनामिबमकृत-धन धणबियाणं / का

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126