Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सटीक जक्ता || श्रितास्त्रिजगदीश्वर नाथमेकं / कस्तानिवारयति संचरतो यथेष्टं // 14 // व्याख्या-हे त्रिजगदीश्वः / र! त्रिजगन्नाथ ! तव गुणाः दमावैराग्यादयस्त्रिवनं लंघयंत्यतिकामंति, त्रिलोकीमाक्रम्य तिष्टंतीत्यर्थः. किंवृताः? संपूर्णमंडलशशांक याश्विनपूर्णिमासंबंधी शशांकश्चंद्रस्तस्य कलाकलापः करनिकरस्तहत् शुत्रा धवलाः, विश्वव्यापे हेतुं दर्शयंति, ये गुण एकं नरांतरपरिहारेणादिनीयं नायं संश्रि. ता अशिश्रयन् . कः पुरुषो यथेष्टं स्वेचया संचरतः परिभ्रमतस्तान गुणान्निवारयति निषेधयति ? यपि न कश्चिन्न त्रिजगदपि भगवझुणग्रहणपरायणं दृश्यते. तया च समर्थे प्रजौ सति सेवाश्रिता नां सर्वत्र प्रचारो युक्त एव. अथ त्रिजगदीश्वरनाथ त्रिजगदीश्वराणां सुरंद्रनरेंडचमरेंद्रादीनां नायं परमपदप्राप्ती योगक्षेमकारिवादिति वृत्तार्थः / / 15 / / यत्र मंत्रः-ॐ हीं छापी वालकीणं, ॐ ही खीरासवलीएं, ॐ ही महुवासबलहीणं, नमः स्वाहा. विपापहारिणी विद्या. अयवा ॐ झे श्रीं क्लीं असिधा नसा चुलु चुचु, कुछ कुचु, मुबु मुलु. विधं मे कुरु कुरु स्वाही. त्रिभुवन स्वामिनी विद्या सर्वसमाहितदा. महिमकथा यथा-सत्यकस्य कनी माही। भृगुकचे च सुव्रतं / / नपोषिता नजं दिव्यां / लब्ध्वा जिनमपूजयत // 1 // श्रीअगदिलवाटके पत्तने सयकः श्रेष्टी, त...

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