Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ जक्ता- तो दर्शिताः, तेन सर्वापि पर्षदिस्मयं गता. पुनरुवार केकी, भो सुबुझे! त्वदेवं जिनं शिवपदा-1 सटीक दानयामीति णित्वा स यावत्तीपं कर्तु लमः, तावन्मंत्रिपारबहादशवृत्तगुणनेनावितचक्रेश्वः चिपेट्याहत्य घरायां दिसः, तस्य नष्टा चेटककला.कपटं प्रकटं जातं वह्नितापेन दीनरूप्यवत. था. हस्म देवी, रे मूर्खशेखर! दुष्टाशय! निरंजनं वागगोचरचरित्रमरूपं. परात्रयस्वरूपं, सर्वसुरोत्कृष्टं जिनरूपं चिकीर्षुः कथं प्राणिपि? यदि जीविताशा तदा सुबुदि देवतमिव जजस्वेति भणनानंतर मेव महामात्यक्रमयोरपतचेटकी, तुष्टा पादयः, मंत्री भक्तामरस्तवमहिमानमवर्णयत. धर्मे चोपदि. श्वान-विद्या विवादाय धनं मदाय / प्रज्ञाप्रकपः परवंचनाय // श्रन्युनतिर्लोकपरानवाय / येपां प्रकाशस्तिमिराय तेषां // 1 // धम्ममि नहि माया / न य कवळं नाणुवत्तिभणियं वा / / फुड. पागडमकुडिवं / धम्मवयणमुज्जुथं जाण // 2 // किंव-हिंसामंगिषु मा कृथा वद गिरं सत्यामपापावहां / स्तेयं वर्जय सर्वथा परवधूमंगं विमुचादरात् // कुर्विजापरिमाणमिष्टविनवे क्रोधादिदो. पांस्त्यज / प्रीति जैनमते विधेहि च परां धर्मे यदोबास्ति ते // 3 // श्त्याकर्य बहवो जना जि. नधर्ममाहतवंतः. चक्रेश्वरी तिरोऽनृत्. सर्वे परमदैवतमंत्रमिव स्तोत्रं पेतुः. सुबुद्धिश्च सकलसंसार. ||

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