Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ 40 नक्ता ति. अथ 'जुगावं दोनहि नवयोगा ' तत्र जगवत एकस्मिन् समये दर्शनमन्यसिंश्च झानं, तत्कमी थं सत्यं ? तद् दयं च वचनदणे एकीनावोपगत मिति युगपद्ग्रहणं. न अंभोधरोदरेण घनगर्भेण निरुश्बनो महाप्रभावो गुरुप्रतापो यस्य सः, अत्रांनोधरशब्देन मतिश्रुतावधिमन पर्पयकेवाला नामावरणानि गृह्यते, पंचभिरेतैरावरणैर्न तिरोहितज्ञानोद्योतः. धन एव सहस्रकिरणादधिकमाहाम्योऽसीति वृत्तार्थः // 17 // यत्र वृत्ते मंत्रः-ॐ हीं नग्रतवचरणचारिणं, ॐ ही दित्ततवाणं, | ॐ ही तत्ततवाणं, ॐ हीं पडिमापडिवन्नाणं नमः स्वाहा. परविद्याविबेदिनी विद्या, अत्र कथा य था-चत्रा बहुदेवीयुग / नरके गुरु नृपजौ // नीत्वा तौ पुनरानीय / कृतो धर्माधतः सुतः // 1 // संगरपुरे निर्जितानेकानेकपसंगरो निःस्वताधीनदीनजनवनसंगरः सत्यसंगरः संगरो गजा. परमाह तस्तस्य गुरखो धर्मदेवाचार्याः, अन्यदा राझो गृहे पुत्रजन्म, स नाम्ना क्रियया च केलिप्रियः, यौवनस्थोसा सकलाः कला जग्राह, परं धर्म नाकरोत, व्यसन्यसो भदयानदयपेयापेयगम्यागम्यसम|| मतिः. राजा पुत्रं प्रबोधयतेनि गुरूनवदत , गुस्वोऽपि केलिप्रियमुपादिशत्, नो कुमार! -ब्रह्महत्या सुरापानं / स्तेयं गुर्वगनागमः // महांति पातकान्याहु-रेभिश्व सह संगमः // 1 // अतस्त्वं सत्सं.

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