Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 41
________________ यस्य सः, श्रत एवापरोऽन्यो दीपस्त्वमसीति वृत्तार्थः // 16 // यत्र मंत्रः-ॐ हीं पूर्वकं बीयबुद्धी. णं, कुठबुझीणं, संभिन्नसोयाणं, यकीणमहाणसाणं, सबलहीणं स्वाहा. श्रीसंपादिनी विद्यात्र वृ. ते ज्ञेया. अथ सूर्यौपम्यनिरासमाह // मूलम् ॥-नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः / स्पष्टीकरोषि सहसा युगपऊगति // नां. चोधरोदरनिरुध्मदापनावः / सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद्र लोके / / 17 / / व्याख्या-हे मुनींद्र ! मुमुनुप्रभो! लोके जुवने त्वं सूर्यातिशायिमहिमासि वर्तसे. सूर्यातिशायी सविशेषोऽपूर्वो महिमा माहात्म्यं यस्य. यतो रविरस्तं प्रयाति, राहुणा परिच्यते, लदमात्रं विश्वं प्रकाशयति, मेघबन्नो नि स्तेजाश्च स्यात, त्वं त्वपूर्वः पूषा, कदाचिजन्यादौ नास्तमुपयासि, दयं न गलसि, केवली नक्तं दिवा सदालोकः. न राहुगम्यः सैंहिकेयग्रसनीयः, अथ च राहुशब्देन कृष्णवर्णत्वाद् उष्कृतं, न तप्याप्तः. सहसा करिति शीघं युगपत्समकालं जगंति जुवनानि स्पष्टीकरोषि प्रकटयसि. ननु केवलि. | नः प्रथमसमये सामान्योपयोगलदणं दर्शनं, द्वितीयसमये विशेषोपयोगरूपं ज्ञानं, तत्कथं युगपद् प्रहणं? उच्यते-दिसमययोरतिसूक्ष्मत्वानिरंतरप्रभावत्वात्केवलिगम्यत्वाच्च युगपद्ग्रहणं न्याय्यमि

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