Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 94
________________ नक्ता। वाक्पटुता युधि विक्रमः // यशसि चानिरुचिर्व्यसनं श्रुतौं / प्रकृतिसिघमिदं हि महात्मनां // 1 // || सटीक | वांग सङानसंगमे परगुणे प्रीतिगुरौ नम्रता / विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिर्लोकापवादाद्भयं // जक्तिश्चार्हति शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले / यौते निवसंति निर्मलगुणाः श्लाघ्यास्त एव | क्षितौ // 2 // इति श्रुत्वा सर्वेऽपि जिनधर्मभाजो जाताः, देवराजं च गुरुमिव मेनिरे. क्रमेण स सार्थेन सह साकेतपुरं प्राप, तत्र मौक्तिकत्रयविक्रयात्सधर्मप्रजावानजागत, नक्तं च-राज्यं च संपदो भोगाः / कुले जन्म सुरूपता // पांडित्यमायुरारोग्यं / धर्मस्यैतफलं विः // 1 // पुनः श्रीपुरमागत्य श्रीविलासमकरोदेवराजो धनी. इति द्वाविंशी कथा // // अथ दावानलनं ये निरस्यति ॥मूलम् ।।-कल्पांतकालपवनोहतवह्निकल्पं / दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्फुलिंग // वि. श्वं जिघसुमिव संमुखमापतंतं / त्वान्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषं // 36 // व्याख्या हे कर्मकदकृशानो! त्वन्नामकीर्तनजलं त्वदन्निधानस्तवनधननोरं यशेषं वज्रामिविद्युत्पदीपनादिनेदात्सकलंदा. वानलं वनवहिं शमयति विनाशयति. किंभृतं दावानलं ? कल्पांतकालपवनेन युगांतसमयवातेनो

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