Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 78
________________ 6 जता-।। फलप्रकरजालविवृधशोभं / प्रख्याफ्यत त्रिजगतः परमेश्वरत्वं // 31 // व्याख्या हे पवित्रचरित्र! सटीक उच्चैरूचं मूर्ध्नि स्थितं निविष्टं तव उत्रत्रयमातपत्रत्रितयं विजाति. किंवृतं ? स्थगितहादिनो जानोः करप्रतापो येन, सूर्यकरोत्तापरोधकं, मुक्ताफलानां प्रकरस्य समूहस्य जालेन रचनाविशेषेण विवृक्षा वृद्धिं गता शोला यस्य तत्, तत्र नवतः स्वर्गमर्त्यपातालरूपस्य त्रिजगतः परमेश्वरत्वं महाधिपत्यं प्रख्यापयत् कथयनिरूपयदिति. अत्र प्रातिहार्यप्रस्तावनाप्रस्तावेऽनुक्ता अपि पुष्पवृष्टिदिव्यध्वनिना. मंडलउर्दुनयः स्वधियावतार्याः, यथा-विटहिसुरहि-जलथल पदिवकुसुमनीहारं / पयरंतसमंते. एं / दसध्वम कुसुमवासं // 1 // इत्यागमे सुरकृता कुसुमवृष्टिः, देवा देवी नरा नारी / शबरा श्वापि शावरी // तिर्यचोऽपि हि तैरवी / मेनिरे भगवदिरं / / // इति पंचत्रिंशद्गुणोपेता दिव्य ध्वनिजिनवाणी. नाममलं चारु च मौलिपृष्टे / विझविताहर्पतिमंडलश्रि॥ (3) देवदुंदुभयो ध. नंत्याकाशे (4) // एतत्सर्वमशोकतरुसहचस्तित्वात् पृथग नोक्तं कविनेति वृत्तार्थः // 31 // श्र व मंत्रो यथा-अरिहंतसिघ्यायरियनवप्नायसवसाहुसवधम्मतिबयराणं नमो भगवईए सुश्रदेव| यए संतिदेवाणं सवपवयणदेवयाणं दसलं दिसापालाणं पंचह्न लोगपालाणं ॐ हीं अरिहंतदेवं न.

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