Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सटीक भक्ता-|| गतिस्तो नव? असऊनसंगं च मुंच ? यतः–यः प्राप्य दुःप्राप्यमिदं नरत्वं / धर्म न यत्नेन करो | ति मूढः // वेशप्रबंधेन स लब्धमधी। चिंतामणिं पातयति प्रमादात // 1 // श्रागमेऽपि-महा. रंनयाए महापरिग्गदियाए कुणिमाहारेणं पंचिंदियवहेणं जीवा निरियानकम्मं पगरंति. श्याद्यु पदिष्टोऽप्यन्नाषिष्ट स निकृष्टः, नास्ति धर्मः, तत्साधकजीवानावात, घनघनानावे गिरिसरित्पूराभाववत् . पंचमहानृतोत्पन्नां चेतनां मुक्त्वान्यः कोऽपि देहे नास्त्यात्मा, तदभावाच नरकादेरप्यन्नावः, ग्रामाभावे सीमानाववत . वाचाटश्चार्वाकोऽयं पठितग्रंथो दुर्वाध्य श्त्यचिंति गुरुन्निः. यतः-विद्ययैव मदो येषां / कापण्यं विनवेऽप्यहो // तेषां देवानिवृतानां / सलिलादमिरुबितः // 1 // ऊचुस्ते पुनस्तं-धर्मानं सुखं नोगा / अारोग्यं राज्यसंपदः // धर्माद्दुःस्थतादुःखं / दास्यदुःकीर्तयोरुजः // 1 // श्त्यादिधर्मवाक्यैरप्यभिन्नमध्यं मुनशैलवत्तं मत्वा श्रीधर्मदेवसूरयो मौनमन्नजन् . नक्तं च-वचस्तत्र प्रयोक्तव्यं / यत्रोक्तं लगते फलं / स्थायीनवति चात्यंतं / रागः शुक्लपटे यथा // 1 // अथैकदा क्षणदायां राजपुत्रप्रबोधोपायं चिंतयंतो गुरखो भक्तामरस्तवषोडशसप्तदशवृत्ताम्नायगुणनद। नरकदर्शनात्केलिप्रियप्रबोधो नावीति चक्रयोक्तास्तथा कुर्वित्यवदन् . ततो बहुदेवीसहितया तया

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