Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ प्रता सटीक // मूलम् // त्वामामनंति मुनयः परमं पुमांस-मादियवर्णममलं तमसः परस्तात् / / वा.! मेव सम्यगुपलन्य जयंति मृयुं / नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीऽ पंया // 23 // व्याख्या-हे मु. नींऽ ! मुनयो झानिनस्त्वां परमं पुमांमं परमं पुरुषमामनंति भणं यवबुध्यते, वेदेऽपि पुरुष एवेदं मिं सर्व यतं यच्च जायं नतामृतत्वस्येशानोदयान्नातिरोहतीति महिमवर्णनं. परमपुंस्त्वं बायांतरपुमोरपेदया, बाह्यः पुमान सकर्मा जीवः. परमः पुमानिःकर्मा सानंतचतुष्कः सिझनच्यते. किंतु तं? थमलं सकलरागद्वेषमलरहितं, श्रादित्यस्येव वर्णः कांतिर्यस्य तमादित्यवर्ण, तमलो ऽस्तिस्य परस्तापरतो वर्तमान. पुराहतो रविसायं दिसं. सांप्रत किमित्युक्तं? भएयते, तेजोशमात्रलब्धिमा म्यात. परमार्थतो नतोत्रमरयोरिख, समुद्रधिहोखि. मंदरांवोरिख महदंतरालं, परमपुरुषालोकसूर्यालोकयोरिति. अन्यच्च मुनयः सम्यगंतःकरए शुध्ध्या त्वामेव, एव शब्दो निश्चये, नपलान्य प्राप्य सत्वा मृयुमत्यंतजयंकरं मरणं जयंति स्फोटयंति, छत्र च 'ॐ ही सः मृयुजाय नमः ' इति मृयुंजयरदा, अपि च शिवपदस्य मोदास्थानस्यान्यस्त्वत्तोऽपरः शिवः प्रशस्तो निरुपद्रवो वा पंथा मार्गो नास्ति, मुक्तिकारणं त्वमेवातः श्रयणीय इति वृत्तजावार्यः // 23 // मदिग्नि कथा यथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126