Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 52
________________ सटीक जक्ता / दन-आधारो यस्त्रिलोक्या जलधिजलधरादवो यन्नियोज्या। जुज्यते यत्प्रसादादसुरसुरनराधीश्व ' रैः संपदस्ताः // आदेश्या यस्य चिंतामणिसुरसुरनीकल्पवृदादयस्ते / श्रीमान जैनेंऽधर्मः किसल. | यतु स वः शाश्वती शमंलक्ष्मी // 1 // इति नित्यसुखदं जैन धर्म श्रुत्वा नरेंद्रः श्रावकोत्, ततोऽ. सा महीपतिजैनप्रासादानचीकरत , जिनधर्मस्य महती प्रभावना संजाता, स्तवमहिमानं प्रत्यदमा. लोक्यान्येऽपि सर्वे तत्पठनपाउनपरा बनवुरिति. दादशी कथा // 15 // श्रय निंदास्तुतिमिश्रं वृत्तमाह // मूलम् ॥-मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा / दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति // किं वी. दितेन जवता वि येन नान्यः / कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेऽपि // 11 // व्याख्या हे स. वैदेवोत्तमप्रगाव नाथ ! हरिहरादय एव दृष्टा विलोकिता वरं प्रधानमित्यहं मन्ये, येषु सुरेषु दृष्टेषु हृदयं चित्तं त्वयि जवद्विषये तोष प्रमोदमेत्यायाति, यतस्तैर्हि तब मुद्रापि नात्यस्ता, तब ज्ञानं तु दुरे. नक्तं च-वपुश्च पर्यकशयं श्लथं च / दृशौ च नासानियते स्थिरे च // न शिवितेयं परती / र्थनाथै-जिनेंद्र मुद्रापि तवान्यदास्तां // 1 // अतोऽपरदर्शनादेव त्वयि जक्तिः, तैलाशनादाज्ये /

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