Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सटीक भक्ताः। सुखभाजनं सर्वलोकमान्यश्चात. इति षष्टी कथा // 6 // श्रथ मुखवर्णनमाह // मुलम् ॥–वक्र क त मुरनरोरगनेत्रहारि / निःशेषनिर्जितजगतत्रितयोपमानं / / कि लंकमलिनं क निशाकरस्य / यहासरे भवति पांउपलाशकल्पं // 13 // व्याख्या-अत्र कशब्दौ महदंतरं सूचयतः. हे सौम्यवदन! क ते तव वक्त्रं सकलमंगलप्रदं मुखं वर्तते? क निशाकरस्य चंऽस्य विवं मंडलं विद्यत ? यत्तन्मुखस्येंदोः साम्यमुच्यते, तत्र मददंतरात्रं पश्यामः किं तं वक्त्रं? सुरनरोरगाणां नेत्राणि हतु शीलमस्येति विग्रहः. जरगा जुवनवासिनः. निःशेषेण सामस्त्येन, वा निःशेषाणि कमलदपए चढादीनि सर्वाणि निर्जितानि तर्जितानि जगत्रितयस्योपमा नि येन. तचंद्रबिंब किंवृतं? कलंकमलिनं लांउनकश्मलं, यच्चविंद वासरे दिने पांमुपलाशकल्पं जीर्णकामुरपर्णसवर्ण जवति. मुखस्य तेनोपमा कथं घटत इति वृत्तार्यः // 13 // मंत्रश्वात्र-ॐ ह्रीं पूर्व आमोसहिलकीणं. विप्पोमहिलहीणं, जलोसहिलघीणं, सबोसहिलकीणं नमः स्वाहा, रोगापहा. रिणी विद्या. अय गुणव्याप्तिमाह // मूलम् ॥-संपूर्णममलशशांककलाकलाप-शुना गुणात्रिनुवनं तव लंघयंति // ये सः |

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