Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 38
________________ सटीको जक्ता | भिस्ते मनोंतःकरणं मनागप्यल्पमात्रमपि विकारमार्ग कामौत्कट्यपयं न नीतं न प्रापितं, अस्मिन्नः / / वार्थ किं चित्रं ? किमाश्चर्य ? यतोऽन्यैरप्युक्तं-एको रागिषु राजते प्रियतमादेहाय हारी हरो / नी. रागेषु जिनो विमुक्तललनासंगो न यस्मात्परः / / रिस्मरघस्मरोरगविषयासंगमृदो जनः / शेषः कामविमंबितो न विषयान जोक्तुं न मोक्तुं दमः // 1 // यत्र दृष्टांतः-कदाचित्कस्मिंश्चिदणे च. लिताचलेन कंपितान्यपर्वतेन कल्पांतकालमरुता प्रलयकालपवनेन मंदराखिशिखरं मेरुशृंगं किंच. लितं ? स्वस्थानात् किं धृतं ? यतो युगांतेऽपि सर्वपर्वतानां दोनो जवति, न सु मेरोः. तया देवी. निरिऽचंद्रगोपेंद्ररुद्रादयः दोजिताः, न जिनेऊ इति वृत्तायः // 15 // मंत्रो यथा-च नवीसतीर्थ करतणी थाण, पंचपरमेष्टितणी बाण, चनवीसतीर्थकरतण तेजि, पंचपरमेष्टितण तेजि, ॐ यह नत्पत्तये स्वाहा, शुचिश्चतुर्दिछ कायोत्सर्गेऽष्टोत्तरशतजापे स्वप्रे शुभाशुनं लगते. धनधान्यक. हिमहामहिमप्रभृतयः स्मरणाद्भवंति. ॐ ह्रीं पूर्व जिणाणं परमोहिजिणाणं अणंतोहिजिणाणं सामअकेवलीणं नवबकेवलीणं अनबन केवलीणं नमः स्वाहा, बंधमोदिणी विद्या, प्रभावे कया यथाअचेष्टं नृपति गाढं / योगिनीदोषतो मुनि // मंत्र्यानीतो मल्लनामा / सज्जनं नीरु अधात // 1 //

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