Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 37
________________ सटीक भक्ता जिनास्तुव्यगुणास्तुव्यफलदाश्च. अनयोः पादुकयोनतयो हेमाचार्या नता एव. दारश्वासमधुना स्व कंगभरणीकरणीयः. किाते मदर्पितहारमध्यमणिमध्यालादुतं प्रवृतमहिमानं श्रीपार्थवि सर्वमा मदं नत्वा भोक्तव्यं चेत्युक्त्वा चाहश्या नृत्. यय प्रातः सा सर्वमप्युदंत श्वसुरादीनानग्रेऽवीकथयत, अदीदृशचावसरझा. उक्तं च-यत्र स्ववचनोत्तपा / जायते तत्र साधयः / / कालकंठः सदा मौ नी। वसंते वदति स्फुटं // 1 / / ततस्तया पारणं कृतं, तुष्टाः सर्वे विस्मिताश्च भृगपुरं प्राप्ता, तया श्रीमुनिसुव्रतषियकं सा लगारोपिता सदा ताहगेवालानानिष्टत, गुरुपादुके च सा नित्यं ननाम. द्वारादने केषां तया विपापहारः कृतः. एवं सत्यककन्यायाः सर्व स य प्रभावं हवा श्वसुरपदोऽपि दृढ पों जातः, स्तवमहिमा च प्रकाशितस्तया, चिरं च सा सुखभोगतावत् डाइ। सुश्राविकेति सप्तमी का था // 7 // अथ भगवन्नोरागतामाह // मुलम् ।।-चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभि-नीतं मनापि मनोन विकारमा / / कल्पांतकालमरुता चलिताचोन / किं मंदरादिशिखरं चलितं कदाचि। / / 15 / / व्याख्या-हे स.. | कलाविकारनिकारपर! यदि त्रिदशांगनानिः सुरस्त्रीनिः, रूपलावए श ारा दिमोहन चेष्टोपेतानिर्देवी.

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