Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ सटीक जक्ता तो हेमः स्वासनमारोपितश्च, स्तवचिंतामणिहृदि स्थापितः, परमजनो जातो राजा, जिनशासनस्य महाप्रनावना प्रससार, सर्वत्र परमानंदश्वाजनि. इति हेमकथा. अथ कविरात्मौछत्यं परिजिहीर्घराह // मूलम् ॥–बुट्या विनापि विबुधार्चितपादपीठ / स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहं // बालं विज्ञाय जलसंस्थितमिदुबिंद-मन्यः क श्बति जनः सहसा ग्रहीतुं // 3 // व्याख्या हे विबुधा| र्चितपादपीa! हे दैवतव्रातपूजितपदासन ! जिन! बुक्ष्या प्रझया विनाप्यहं मानतुंगाचार्यः स्तोतुं समुद्यतमतिः स्तवाय कृतमतिव्यापारो वते, अत एव विगतत्रपोऽशक्यवस्तुनि प्रवर्तनानिलकाः, दृ. टांतमाह-बालं शिशुं विहाय मुक्त्वा कोऽन्योऽपरो जनः सचेतनो जलसंस्थितं नीरकुंडमध्यप्रति विचितमिदुर्विवं चंद्रमंडलं ग्रहीतुं लातुं सहसा तत्कालमिवति थनिलषति ? बालस्तद्गृहणाग्रहा हिलो नवति, नापरः, अहमपि बालरूपो ज्ञेय इति, यहं तादृशमतिशक्तिविकलो दुष्करकवित्वधुरोहरणांगीकरणनिर्वहणात प्राझधुरंधरेषु प्राधान्यं प्राप्स्यामीति, यतस्तद्विदः कवित्वश्रमविदः. नक्तं च-विछानेव हि जानाति / विद्वज्जनपरिश्रमं // न हि वंध्या विजानाति / गुर्वी प्रसववेदनां / / / // 1 // इत्याशयः // 3 // अथ जिनेऽस्तुतावन्येषां अःकरणं दर्शयन्नाह

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