Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 27
________________ सटीक 25 नक्ता | स्वामी मौ न्यवी विशत्, ततो जुवः कंटकाादधरतां, दंशमशकादिकमरदतां. प्रातः स्वामिपार्श्वनु / वं प्रमाय नलिनीदलानीतनीरेण न्यषिंचतां, बकुलकमलपाटलादिकुसुमप्रकरं विस्तार्य चरणावन्यच्यामहांजितदो नवेत्युक्त्वा नमोऽकार्टी. उन्नयपार्श्वयोरसिधरौ तार्थना यमसेविषातो. एवं मध्यंदि. ने संध्यायामपि च वंदित्वा कामितमयाचतां. चं जंगम तीर्थ समाश्रयमोन मिविनम्योर्गतः कियान कालः. एकदा धरणेंद्रश्चलितासनः स्वामिनिमंसिषुरेतः, नमस्कृतो भावमारं नगवान स्तुतश्व, तावप श्यत. को युवां ? किमर्थ परमपुरुषसेवायै लगावित्यपृलत. तावूचतुः, जो महाशय! कलमहाकन सुतौ नमिविनमी दत्रियावावां राज्याथै नाथं सेवितुमारगावहि. पातालेोऽवदत, निरीहो निर्म | मो मुक्तमर्वसंगो भगवान किं वितरिष्यति? निर्धनाका धनप्राप्तिः? न कस्मै रुष्यति तुष्यति वा नीराग. स्वादसौ. उरतं भजतं, स च तुष्टः किंचन राज्यांशं युवाभ्यां दास्यति. तो स्माहतुः, शगुनोः, स्वामी यादृग् त्वयोक्तस्ताहगस्तु. यावा.यां वांनितार्य स एवाश्रितः, सफलो भवतु मा भवतु वा परं जरतं | न सेवावहे, कटपवृदं मुक्त्वा कः कर्कवू स्वीकुरुते ? कांचनं त्यक्त्वा कारनालमादत्त ? चिंतामणिं | हित्वा कः कर्करकं ग्रंथो बध्नाति? रत्नाकरं विहाय को खवणाकरं सेवते? इति जानीहि? इहामुत्रावयोः //

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