Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 29
________________ 17 जक्ता | कवत. सोऽदृष्टपूर्वी जिनमुर्ति दृष्ट्वा तुष्टः स्तुति पठितवान् यथा-वपुरेव तवाचष्टे / जगवन् वी / सटीक तरागतां // न हि कोटरसंस्थेऽमौ / तरुभवति शाम्बलः // 1 // ततोऽन्यत्र शिवादी विरक्तोऽसौ जिनदर्शनासकोऽन्दुमा वातिहिजसुनुः, श्रात्तव्रतः सूरिपदमापत्रमात्. पूर्वगतवेत्ता व वाचकोऽनवत. चक्षुरिति जातावेकवचनं. ध्यानिनो भवन्मुद्रास्वरूपावबोधार्थ स्थिरी उय निर्निमेषशा त्वां प: श्यतोऽपम्सुरेष्वरुचिं दयनीयर्थः. अत्रोपमा-कः पुरुषो दुग्धसिंधोः दीरसमुद्रस्य पयो दुग्धं जल पीत्वा जलनिधेर्लवांभोधेः दारं कटुकं जलमशितुं स्वादितुं पातुमिबेत ? अपि तु न कोऽपि. दुः ग्धसिंधोः पयः किं वृतं ? शशिनः करास्तद्वद् द्युतिर्यस्येति शशिकराति चंद्रकरनिर्मलं, तीर्थकररूपदर्शन दीरसागरपयःपानसमं, अपरदेवरूपदर्शनं दारसमुद्रोदकस्वादसमानमिति वृत्तनाचार्यः // 11 // मंत्रश्वायं-ॐ ही रहताणं सिखाणं सुरीणं नवज्ञायाणं साहणं मम ऋमि वृधि स मोहितं कुरु कुरु स्वाहा. शुचना प्रातः संध्यायां वारत्रयस्मरणात्सर्वमितिः, कपर्दिवत् कामधेनोः कामितावाप्तिः-कपर्दी नदानी धेनु-मधोक हात्रिंशतं दिनान // तदीरं स्वर्णलदाणि / प्रांते नृपं न्यमंत्रयत् // 1 // श्रीयणहिल्वपत्तने चाबुक्यवंशीयः श्रीकुमारपालदेवो राजा, भोपलदेवीना.

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