Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 21
________________ सटीक जक्ता किमपि नास्फुरद्योगिनः, फलभ्रष्टदिपीव स विलदाः स्थितः. उक्तं च-तावर्जति मातंगा। वने मदभरालसाः // लीलोल्लालितलांगलो / यावन्नायाति केसरी // 1 // धूलीपो देवीतर्जितः श्रेष्टिचे. ष्टितं कथमपि ज्ञात्वा तबरणमंगीचकार. श्रेष्टी तं राजस्थानमानयत. ततो विदितसर्वोदतो धूलीपः १ए सुधनश्रेष्टिपार्थाधम शुश्राव, यथा-हिंसा त्याज्या नरकपदवी सत्यमानाषणीयं / स्तेयं हेयं सुरत. विरतिः सर्वसंगानिवृत्तिः // जैनो धर्मो यदि न रुचितः पापपंकावतेभ्यः / सर्पिऽष्टं किमिह कथितं यत्प्रेमेही न चुक्ते // 1 // देवेषु वीतरागा-द्देवो व्रतिषु व्रती च निग्रंथात // धर्मश्च दांतिकृपाधर्मादस्त्युत्तमो नान्यः // 2 // इति धर्म श्रुत्वा स सम्यक्त्वधरोऽभूत, श्रेष्टिनं च गुरुमिव मेने. त. तो देव्या धूलिरुपशामिता, सूर्याशुसदृश जिनशाप्तनं सप्रतापं व्यरचत्सुधनः अथ देवाधिदेवं दृष्ट्वा धूलीप ति तुष्टाव-जिनेंद्रचंडप्रणिपातलालसं / मया शिरोऽन्यस्य न नाम नाम्यते // गजेंद्र गलस्थलपानलंपट / शुनीमुखे नालिकुलं निलीयते // 1 // इति सर्वोऽपि जनो भक्तामरस्तवमध्य गीष्ट, गरिष्टगरिममंदिरं च श्रेष्टी जातः. // इति तृतीया कथा / / स्तवारंजसामर्थ्य दृढयन्नाह // मूलम् ॥-मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेह-मारन्यते तनुधियापि तव प्रगावात // चे.

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