Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 20
________________ सटीक जक्ता विचक्रायै स्वाहा, शांत्युपशांतिसर्वकार्यकरी नव देवि अपराजिते ॐ उः वः राजकुले विवादे कटः | कादिषु स्मर्यते, एतन्माहात्म्ये तु धन उदाहरणं-दिवापि तमसाकीर्णाः। श्रेष्टिपजिनालयाः // धूलीपवैष्णवागारौ / रजोव्याप्तौ स्तवस्मृतेः // 1 // पाटली पुरपत्तनेपरमजैनः सुवासनः सधनः 17 | सुधननामश्रेष्टी वन्व. स वकास्तिपासादे श्रादिदेवस्यार्चामानर्च. तत्संपर्काडाजा भीमोऽपि श्रावकोऽनृत्, नक्तं च-जाडयं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं / मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति // चेतः प्रासादयति दिक्षु तनोति कीर्ति / सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसां // 1 // अप्रा. न्यदा तत्पुरोद्याने वैष्णवो धूलीपनामा योग्यागात् . स च सिध्क्षुद्रचेटकः सेवकीकृतपाखंमिपेटकः पाटलीपुरीयं सर्वजनमाचकर्ष निजकलया. ततोऽसौ चित्ते जहर्ष. अथासौ कंचन जनं पप्रल, मत्सेवनाय को नायाति नागरः? सोऽवदत, श्वेतांबरदर्शननक्तिदृढौ राज श्रेष्टिना नायातो. धूलीपश्चेटकशक्त्या जिनराजश्रेष्टिगृहे बहुधुलीवृष्टिमकरोत. प्रातः श्रेष्टी पांशुपंक्तिपातेन प्रसृतं तमो दृष्ट्वा भक्तामरस्तवसप्तमवृत्तगुणनावसरे प्रकटीचक्रे चक्रेश्वरी, मा चाईबासनप्रनावनाचि. कर्षिया सुधनवचसा जिन नृपश्रेष्टिगृहगतां धूलिं निरस्य वैष्णवमंदिरे धूलीपस्थाने च पांशुपूरमविपत्

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