Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ भक्ताः कुरु स्वाहा, सर्वरदाकरी भगवती केशववत्.-निराकृत्य हरि मार्गे / केशवो याति संस्तवात् / / | पृष्टे कृत्वा ततो देव्या / रसकूपादहिः कृतः॥१॥ निलघाटी तृपं दिप्त्वा / वने च जलयोगतः / / दुरितानि दायं जग्मु–श्चकाराह्निजिनालयं // 2 // युग्मं / / वसंतपुरे केशवनामा निर्धनो वणिगेको वसतिस्म. सोऽन्यदा गुरुदेशनामश्रौषीत् , यथा-धर्मो मंगलमुत्तमं नरसुरश्रीजुक्तिमुक्तिपदो / धर्मः पाति पितेव वत्सलतया मातेव पुष्णाति च / / धर्मः सणसंग्रहे गुरुवि स्वामीव राज्यप्रदो। धर्मः स्निह्यति बंधुवदिशति वा कल्पवद् वांनितं // 1 // किंच-कलाणकोडिजणणी। पुरंतदु. रियास्विग्गनवणी // संसारजलहितरणी / श्क्कुचि व दो जीवदया // 2 // इति श्रुत्वा स हिंसाविरतिव्रतमग्रहीत, भक्तामरस्तवं चापाठीत् . थय केशवो धनं विना सर्व जात्यादिकमनर्थ मेंने. उक्तं च-यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः / स पंडितः स श्रुतवान गुणाः / स एव वक्ता स च दर्शनीयः / सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयति // 1 // यतो धनाजनचिकीरसौ देशांतरमसरत् . मार्गे गबन साजिष्टः स पंचाननेन रुः, भक्तामरस्तवमस्मार्षीत. सिंहोऽनश्यत्. ततः केनचिक. | पालिना विप्रतार्य स धनाशया रसकूपिकां प्रवेशितः. योगी रसभृतं तद्दत्तं तुंब जग्राह. केशवः स.

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