Book Title: Bhaktamar Stotra Satikam
Author(s): Mantungasuri, Gunakarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ नक्ता) सटीक 11 // मूलम् // त्वत्संस्तवेन नवसंततिसंनिबई / पापं दाणादायमुपैति शरीरनाजां / / आक्रांत. लोकमलिनीलमशेषमाशु / सूर्याशुनिन्नमिव शावरमंधकारं / / 7 // व्याख्या हे सकलपातकनाशन जिन! त्वत्संस्तवेन भवजुणोत्कीर्तनेन शरीरजाजां प्राणिनां भवसंततिसंनिवई जन्मकोटिसमर्जितं पापमष्टविधं कर्म दणात् घटिकाषष्टांशेन स्तोककालादा दयमुपैति निर्माशमुपयाति. नगवत्स्वरूपध्यानादेहिनां साम्यं भवति, साम्यादुक्तपापदयो युक्तः, नक्तं च-प्रणिति दाणार्धेन / साम्यमा लंब्य कर्म तत् // यन्न हन्यानरस्तीव-तपसा जन्मकोटिन्निः / / 1 / / अमुमेवार्थमुपमिमीते-पापं किमिव ? अंधकारमिव, यथा शार्वरं कृष्णपदरात्रि तिमिरं सूर्याशुभिन्नं सहस्रकररोचिर्विदारितं याशु शीघं दायं व्रजति. यतः किंतमंधकारं ? थाक्रांतलोकं व्याप्तविश्वं. अलिनीलं मधुकरकुलकृष्णं, अशेषं सकलं, न तु स्तोकं, पापविशेषणान्यथौचित्येन कार्याणि. यथा दुस्तिदायहेतुर्जिनस्तवस्तथा तिमिरनाशहेतुः सूर्योदय इति. नक्तं च-रवेरेवोदयः श्लाघ्यः / किमन्यैरुदयांतरैः // न तमांसि न तेजांसि / यस्मिन्नन्युद्यते सति // 1 // इति वृत्तजावार्थः. / / 9 // अथ मंत्रोऽपि यथा-ॐ हां ही हूं ऋषनशांतितिकीर्तिकांतिबहिलमी. ही अप्रतिचक्रे फट

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