Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 12
________________ कर संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। द्रव्य विवेचन में छः द्रव्यों के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। आचार विवेचन में श्रमणों के आचार के साथ-साथ श्रावकाचार का भी विवेचन किया गया है। कर्मबंध व क्रिया विवेचन में कर्मबंध के कारण, प्रक्रिया, कांक्षामोहनीयकर्म, लेश्यादि तथा क्रिया के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है। लोक-परलोक विवेचन में लोक के स्वरूप का जैन दृष्टिकोण से विवेचन है। कथानक प्रकरण में ग्रन्थ में वर्णित विभिन्न कथानकों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। इसी अध्याय में शतकों के अनुसार भी विषयवस्तु का प्रस्तुतिकरण किया गया है। विस्तार भय से इस अध्याय में सभी शतकों की विषयवस्तु नहीं देते हुए प्रमुख-प्रमुख शतकों की विषयवस्तु दी गई है जिसके अध्ययन से शतकों के अनुसार ग्रन्थ की विषयवस्तु की शैली से भी अवगत हुआ जा सकेगा। भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन के पाँचवें अध्याय में भगवतीसूत्र के महत्त्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया गया है। इससे यह ज्ञात होता है कि धर्म-दर्शन प्रधान यह ग्रन्थ अनेक सांस्कृतिक मूल्यों व परम्पराओं को अपने में समाहित किये हुए है। इनके अध्ययन से महावीर-कालीन समाज व संस्कृति का सम्पूर्ण चित्र हमारे समक्ष उपस्थित हो जाता है। इसमें प्रतिपादित मनोविज्ञान, विज्ञान, कला आदि से सम्बन्धित सामग्री इसे आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान के समकक्ष ला खड़ा करती है। छठे अध्याय में लोक-स्वरूप पर विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय में विभिन्न जैन ग्रन्थों में वर्णित लोक के स्वरूप की विवेचना करते हुए भगवतीसूत्र में प्रतिपादित लोक-स्वरूप का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। लोक का स्वरूप बताते हुए उसे पांच अस्तिकायों-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय तथा पुद्गलास्तिकाय का समूह माना है। द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की दृष्टि से लोक के स्वरूप का विवेचन करते हुए द्रव्य व क्षेत्र की दृष्टि से लोक को सान्त तथा भाव व काल की दृष्टि से अनन्त बताया है। क्षेत्रलोक के तीन भेद- ऊर्ध्वलोक, अधोलोक व मध्यलोक किये हैं। तीनों के संस्थान का निरूपण करते हुए अधोलोक को तिपाई के आकार का, मध्यलोक को झालर के आकार का, तथा ऊर्ध्वलोक को ऊर्ध्वमृदंग के आकार का बताया है। सम्पूर्ण लोक का आकार 'त्रिशरावसंपुटाकार' बताया है। लोक-स्वरूप की विवेचना में अष्टविध लोक भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन

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