Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ आगम के रूप में स्वीकार करती है। अर्थात् वर्तमान में जो श्रुत उपलब्ध है वह भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट है, जिसे गणधरों ने सूत्र रूप में ग्रन्थबद्ध किया है। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् जैन वाङमय की यह ज्ञानराशि मौखिक रूप में गुरु-परम्परा से शिष्यों को प्राप्त होती रही, किन्तु काल व परिस्थितियों के कारण आगमों का क्रमशः विच्छेद होना प्रारंभ हो गया। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए श्रमणों द्वारा विभिन्न सम्मेलन बुलाये गये तथा उन्हें लिखित रूप प्रदान किया गया। ये सम्मेलन आगम वाचनाओं के नाम से जाने जाते हैं। पंचम वाचना वीर-निर्वाण के लगभग 980 वर्ष बाद वल्लभी में देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में हुई। इसमें सभी आगमों को पुस्तकारूढ़ किया गया। यही ज्ञान राशि विभिन्न आगम ग्रंथों के रूप में आज हमें उपलब्ध है। इस विवेचन से यह ज्ञात होता है कि जैन आचार्यों के अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप ही तीर्थंकरों की वाणी जैन आगम साहित्य के रूप में सुरक्षित है, और यही जैन धर्म व संस्कृति को जानने का मूल आधार है। प्रस्तुत कृति के इसी अध्याय में भिन्न-भिन्न आधारों पर आगमों का वर्गीकरण भी प्रस्तुत किया गया है। आगमों का संक्षिप्त परिचय यहाँ अपेक्षित था। किन्तु, अन्य ग्रन्थों में यह सामग्री विद्यमान होने के कारण उसे यहाँ प्रस्तुत नहीं किया गया है। द्वितीय अध्याय में भगवतीसूत्र तथा अन्य आगमों में प्रतिपादित विषयवस्तु की साम्यता को स्पष्ट करते हुए अन्य आगमों के परिप्रेक्ष्य में भगवतीसूत्र के स्थान को निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है। आचारांग, सूत्रकृतांग, ज्ञाताधर्मकथा, उत्तराध्ययन, प्रज्ञापनासूत्र आदि आगमों में वर्णित तत्त्व विवेचन, आचार विवेचन, प्रमाण, नय, कर्म, क्रिया आदि विषयों का विवेचन भगवतीसूत्र में किसी ना किसी रूप में अवश्य हुआ है। भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का लेखा-जोखा भी यह ग्रन्थ प्रस्तुत करता है। अतः इस अध्याय में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि भगवतीसूत्र में वर्णित विषयों का अन्य आगमों से गहरा सम्बन्ध है। इसे पूर्ण समझने के लिए अन्य आगमों का अध्ययन उतना ही आवश्यक हो जाता है जितना कि अन्य आगम ग्रन्थों को जानने के लिए भगवतीसूत्र का अध्ययन जरूरी है। भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन के तृतीय अध्याय में भगवतीसूत्र का परिचय विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय में भगवतीवृत्ति के आधार पर भगवतीसूत्र के मूल नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति के भिन्न-भिन्न नामकरणों VIII भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन

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