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व्याख्या प्रज्ञप्तिः
१ शतके उद्देशः १ ॥ १९॥
विनाज नाश पामे छे. (प्र०) हे भगवन् ! ए नहीं चखाएला अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलोमां कया कया पुद्गलो अल्प, बहु, * तुल्य, अने विशेषाधिक छ ? (उ०) हे गौतम ! नहीं चखाएला पुद्गलो सौथी थोडा छे अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलो अनंतगुणा
छ. (प्र०) हे भगवान् । बेइंद्रिय जीवो जे पुद्गलोने आहारपणे ले छे, ते पुद्गलो तेओने वारंवार केवे रुपे परिणामे ! (उ०) हे| गौतम! ते पुद्गलो तेओने विविधतापूर्वक जिंद्रियपणे अने स्पर्शद्रियपणे वारंवार परिणामे छे, (५०) हे भगवन् । बेइंद्रियजीवोने पूर्व आहरेला पुद्गलो परिणम्या ? (उ०) हे गौतम! ए बधु पूर्व प्रमाणेज कहे, यावत्-चलितकर्मने निजरे छे. ऋण इंद्रियवाळा
अने चार इंद्रियवाळा जीवोनी स्थितिमा मेद छे. बाकी वर्षा पूर्व प्रमाणे छे. यावत् अनेक हजार भागो सुंघाया विना, चखाया विना ४ अने स्पर्शाया विनाज नाश पामे छे. (प्र०) हे भगवन् ! ए नही सुंघाएला नहीं चखाएला अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलोमा कया
कोनाथी घोडा, बहु, तुल्य के विशेषाधिक छे (ए प्रमाणे प्रश्न करवो) (उ०) हे गौतम! सौथी थोडा नहीं सुंघाएला पुद्गलो छे | तेथी अनंतगुणां नहीं चखाएला अने तेथी अनंतगुण नहीं स्पर्शाएला पुद्गलो . पण इंद्रियवाळा जीवोए साधेलो आहार घ्राणेंद्रिय सपणे, जिमइंद्रियपणे अने स्पर्शेद्रियपणे वारंवार परिणामे छे, अने चार इंद्रिय वाग जीवोए खाधेलो आहार आंख [इंद्रियपणे, नाक
[इंद्रियपणे] जिम [इंद्रिय] पणे अने चामडी [इंद्रिय पणे वारंवार परिणामे छे. पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिकोनी स्थिति कहीने तेओनो उच्छ्वास विमात्राए कडेवो. अनाभोगनिर्वर्तित आहार तेओने विरह विना प्रति समये होय छे अने आभोगनिर्वतित आहार जघन्ये अंतर्मुहूर्त, तथा उत्कृष्टे छभक्ते वे दिवसे-वे दिवस गया पछी होय छे. बाकी बधुं चार इंद्रियवाळा जीवोनी पेठे जाणवू यावद-चलित कर्मने निर्जरे छे. ए प्रमाणे मनुष्यो संबंधी पण जाणवू, विशेष ए के, तेओने आमोगनिवर्तित आहार जघन्ये अंतर्मुहर्ते अने उत्कृष्ट
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