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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १७ ॥
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(प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारी केटले काळे श्वास ले अने निःश्वास के ? ( उ०) हे गौतम ! तेओ जघन्ये सात स्तोके अने उत्कृष्टे मुहूर्तपृथकत्वे वे मुहूर्तथी नव मुहूर्तनी अंदरना कोई पण काळे श्वास ले अने निःश्वास मूके. (प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारो आहारना अर्थी छे ? (उ०) हे गौतम! हा, तेओ आहारना अर्थों छे. (प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारोने केटलो काळ गया पछी आहारनो अभिलाष उत्पन्न थाय छे १ (उ०) तेओने चे प्रकारनो आहार कह्यो छे, ते आ प्रमाणे : - आभोग निर्वर्तित अने अनाभोग निवर्तित. तेमां जे अनाभोग निर्वर्तित आहार के तेनो अभिलाष निरंतर थाय छे. तथा जे आभोग निर्वर्तित अहार छे. तनो अभिलाष जघन्ये एक दिवस पछी अने उत्कृष्टे दिवसपृथकत्व पछी थाय छे. बाकी वधुं अमरकुमारोनी पेठे जागनुं यावत् अवलित कर्म ने निर्जरता नथी, अने ए प्रमाणे सुवर्णकुमारोने पण कहेतुं तथा यावत् स्तनित कुमारोने माटे पण जाणवु, (प्र०) हे भगवन् । पृथिवीकायिक जीवोनी स्थिति केटला काळ सुधी कही छे ? (उ०) हे गौतम ! तओनी स्थिति जघन्ये अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्टे बावीस हजार वर्षनी कही छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिको केटला काळे श्वास ले छे ? (उ०) हे गौतम! तेओविमात्राए - विविधकाळे श्वास ले छे. (प्र०) हे भगवन् । पृथिवीकायिको आहारार्थी छे १ (उ०) हे गौतम! हा, तेओ आहारार्थी छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिकोने केले काळे आहारनो अभिलाष धाय छे ? (उ०) हे गौतम! तेओने निरंतर आहारनो अमिलाप थाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिको शेनो आहार करे छे. (उ०) हे गौतम! तेओ द्रव्यथी अनंत प्रदेशवाळां द्रव्यनो आहार करे छे. | इत्यादि वधुं नैरयिकोनी पेठे कहे अने यावत्-तेओ व्याघात न होय तो छए दिशामांथी आहार ले छे, जो व्याघात होय तो कदाचित् त्रण दिशामांथी, चार दिशामांधी अने पांच दिशामांथी आहार ले छे. वर्णधी काळां, नीलां, पीळां, लाल, हळदर जेवां
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१ शतके उद्देशः १
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