Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ अनुभव जागे ५ जरूरी है। इससे घबराकर हम इस प्रक्रिया को अस्त-व्यस्त नहीं करें । दुःख-मुक्ति चाहते हैं तो संवेदन-केन्द्रों पर नियंत्रण करना ही होगा। प्रेक्षा : नियंत्रण की प्रक्रिया नियंत्रण की पद्धति है-प्रेक्षा। हम केवल वाणी के द्वारा नियंत्रण नहीं साध सकते। नियंत्रण के लिए अभ्यास करना होता है, प्रयोगों से गुजरना होता है। प्रेक्षा का अर्थ है-देखना। हम पहले देखें और संकल्प-शक्ति का प्रयोग करें। देखने का अर्थ है--साक्षात्कार करना। यह केवल मानना नहीं है, दूसरों के सहारे चलना नहीं है। इसमें न शब्दों का सहारा होता है, न मान्यताओं का सहारा। यह है अपना अनुभव। आज के विज्ञान ने जितना विकास किया है, जितने आविष्कार किए हैं, वे सब अनुभव के आधार पर किए हैं। एक है पढ़ा-पढ़ाया ज्ञान और एक है प्रयोग-सिद्ध ज्ञान । प्रयोग-सिद्ध ज्ञान का नाम है-अनुभव । जो बात स्वयं की कसौटी पर खरी उतरती है, वह हमारा अनुभव बन जाती है। जो बात सुनी-सुनायी होती है, वह कभी अनुभव नहीं बन सकती। वह उधार की पूंजी होती है। अनुभव नगद की पूंजी है, स्वयं की संपदा है, स्वयं की पूंजी है। बुद्धि और अहंकार एक अध्यात्म के आचार्य ने रूपक की भाषा में एक रहस्य का उद्घाटन किया। एक बार मन में यह विकल्प उठा कि अनुभव को जगाया जाए। मन की बात बुद्धि तक पहुंची। यह जानकर अहंकार बुद्धि के पास आकर बोला ___ अहंकारो धियं ब्रूते, नैनं सुप्तं प्रबोधय। उदिते परमानन्दे, न त्वं नाहं न वै जगत्।। 'अरे बुद्धि ! तुम अनुभव को मत जगाओ। उसे सोया ही रहने दो। उसका सोना ही अच्छा है।' बुद्धि ने पूछा- 'क्यों, क्या बात है?' अहंकार बोला-'तुम नहीं समझती। अनुभव के जाग जाने पर न तुम्हारा अस्तित्व ही रहेगा, न मेरा अस्तित्व ही रहेगा और न यह जगत् (का ममत्व) ही रहेगा। सब नष्ट हो जाएंगे। इसलिए उस अनुभव को सोने ही दो।' बुद्धि और ममकार बुद्धि ने अहंकार की बात नहीं मानी । इतने में ही ममकार वहां आ पहुंचा। उसने बुद्धि से कहा ममकारो धियं ब्रूते, नैनं सुप्तं प्रबोधय। उदिते परमानन्दे, न त्वं नाहं न वै जगत्।। 'देवी बुद्धि ! अनुभव को मत जगाओ। इसे जगाना खतरनाक है। इसे जगाना अपने अस्तित्व को गंवाना है। इसके जाग जाने पर न मैं रहूंगा, न तू रहेगी और न जगत् रहेगा। सब कुछ समाप्त।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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